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दैनिक प्रतियोगिता लेखनी काब्य-31-May-2022 प्राईवेट नौकरी की पीडा़

बहुत कोशिश से प्राइवेट नौकरी पाई थी।
पर बिना चापलूसी के वह दूर भगाई थी।। 
प्राइवेट नौकरी ने मुझसे नाता तोड़ लिया।
मुझे छोड़ बेबफाई से नाता जोड़  लिया।।
मै हमेशा बाँस की डाँटे खाकर अडा़ रहा।
अपनी ड्यूटी पर सच्चाई से खडा़ रहा।।
पर मेरी यह दिल की सच्चाई काम न आई।
इसे बचाने के चक्कर में छोड़ गयी लुगाई।।
इसकी तनखा से  मै परेशान ही रहता था।
कभी बीबी कभी बौस की डाँट सहता था।।
नौकरी मेरी मन की बात नही सुन पाई।
मुझको ही हमेशा बाँस की डाट खिलाई।।
हे मेरे आका मुझे  अब देदो नौकरी सरकारी।
जिससे मिट जाय जीवन की प्राबलम सारी।।
मै  भी रिश्वत लेकर  रुपया बहुत कमाऊँगा।
मै फिर दुनियाँ का बडा़ धनवान बनजाऊँगा।।
ऊँची ऊँची कोठी हौगी और होगी मोठर कार।
मुझसे मेरे रिश्तेदार  करेगे बहुत अधिक प्यार।।
सरकारी नौकरी को सभी करते है बहुत सलाम।
क्यौकि उसमे हमको नहीं करना पड़ता है काम।।

दैनिक लेखनी काब्य  प्रतियोगिता हेतु रचना।

नरेश शर्मा " पचौरी "

31/05/2022


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10 Comments

Reyaan

01-Jun-2022 11:27 AM

Nice 👌

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Seema Priyadarshini sahay

01-Jun-2022 11:21 AM

बेहतरीन👌👌

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Kusam Sharma

01-Jun-2022 09:28 AM

Nice

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